tag:blogger.com,1999:blog-1899812701717999822.post443338668431339993..comments2023-10-05T09:44:16.091-07:00Comments on शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन: "जीवन का लक्ष्य" (1-15 Dec.2013) पाक्षिक समाचार पत्ररमेश कुमार जैन उर्फ़ निर्भीकhttp://www.blogger.com/profile/01260635185874875616noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-1899812701717999822.post-58183270807421573452014-06-21T20:06:11.670-07:002014-06-21T20:06:11.670-07:00निदिध्यासन याने अपने आपको आप ही अभ्यासः कराना जिसस...निदिध्यासन याने अपने आपको आप ही अभ्यासः कराना जिससे आत्मकल्याण हो | जो जीवनका लक्ष्यभी है | जड़ शरीर, इन्द्रिया, मन और बुद्धिसे परे खुशामत खुदा को ही प्यारी होती है | इससे नीचे जड़ता गए तो ईश्वरको बुरा लगता है | बस वैसेही जड़ता से परे पतीही परमेश्वर है | मंदीरमें रखीं ईश्वरकी प्रतिमा का दर्शन करते हुवे जो अपने अंदर चेतन का अनुभव करता है उसे ही ईश्वर दर्शनका लाभ होता है | जिसे भगवद गीतामें कुछ ऐसे वर्णन किया है ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन अमल शहजा सुख राशी | जिसे हम कुछ ऐसेभी समझ शकते है हमारे अंदर के चेतनका सहारा लेके शरीर और मन - बुद्धि को मल रहित करना जिससे ईश्वर चैतन्य का अमल हो शके हमारे द्वारा इस जगपे जो उस चैतन्य ईश्वरकाही है | Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/02057588181456382402noreply@blogger.com