मैंने अपनी समस्याओं से परेशान होकर पिछली पोस्ट क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं में लिखा था और तीस हजारी की लीगल सैल में मेरे साथ बुरा बर्ताव किया था और सरकारी वकील ने जान से मारने की धमकी पूरे स्टाफ के सामने दी थीं, क्योंकि काफी दिनों बीमार चल रहा था. इसलिए उसकी उच्च स्तर पर शिकायत करने में असमर्थ था. सरकारी वकील की शिकायत क्यों करनी पड़ी इसको देखने के लिए उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से देखे.अब मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है.वैसे मैंने कल ही राष्ट्रपति से इच्छा मुत्यु प्रदान करने की मांग की हैं. लेकिन जब तक जिन्दा हूँ तब अपने लिखे हुए "सच आखिर सच होता है, सांच को आंच नहीं, जो लिखूंगा सच लिखूंगा, सच के सिवाय कुछ नहीं, सच के लिए मैं नहीं या झूठ नहीं, आज तक निडरता से चली मेरी कलम, न बिकी हैं, न बिकेगी, मेरी मौत पर ही रुकेगी मेरी कलम" शब्दों का मान रखते हुए भ्रष्टाचारियों की शिकायत करता रहूँगा.
मेरी परेशानियों में मेरी पत्नी और सुसराल वालों के साथ ही न्याय व्यवस्था का पहला दरवाजा यानि पुलिस का बहुत बड़ा रोल है. जिसमें क्षेत्रीय थाने से लेकर थाना कीर्ति नगर की वोमंस सेल, थाना मोतीनगर की जांच अधिकारी, ए.सी.पी, डी.सी.पी, सयुंक्त कमिश्नर और दिल्ली पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में बैठे जिनकी इंसानियत मर चुकी हैं और आँखों के अंधे अधिकारी जिम्मेदार है. कुछ ने मजबूरीवश व कुछ ने दवाब में और कुछ ने रिश्वत न मिलने के चलते हुए अपनी दुश्मनी निकालने के उद्देश्य से मेरी परेशानियों को बढ़ाने का काम किया. जब किसी व्यक्ति का समय फिरता है तब चारों ओर से एक के बाद एक मुसीबत का पहाड़ टूटता है. पिछले छह सालों में दो-दो बार टायफाइट, पथरी का ओपरेशन और खूनी ववासिर की बीमारी में आराम न आना. इसके साथ ही डिप्रेशन की बीमारी के कारण किसी चीज में पूरा ध्यान का नहीं लग पाना. इससे सारा बिजनेस का चौपट हो जाना और दोस्तों के साथ ही रिश्तेदारों का मुंह छिपाना. एक के बाद एक घटनाचक्रों ने आज जीवन जीने की इच्छा खत्म कर दी. ऐसी हालात में जैसा समझ में आया कह दिया और जैसा समझ में आया लिखकर भेज दिया. उसी के चलते ही दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें.
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