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बुधवार, 28 दिसंबर 2011

आप मुझे "बकवास" शब्द की परिभाषा बताएं ?

यह लिंक जरुर देखें-कैसे लोग चेहरे पर मुखौटा लगाए हुए है ?

हमारीवाणी एग्रीगेटर, Hamarivani.com के माध्यम से:


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    • रमेश कुमार सिरफिरा ‎@दिव्या श्रीवास्तव जी, आप खुद इसका कितना पालन करती है ? आप एक बुध्दिजीवी वर्ग से आती है यानि आप एक डाक्टर है. अपनी असभ्य भाषा खुद देखें. दिव्या श्रीवास्तव जी, लगता है आप हमसे नाराज है. जो देशहित और समाज हित के हमारे लिंकों बार-बार हटा देती हैं. क्या आप स्वयं भारत देश के प्रति ईमानदार है ? क्या आप स्वयं लोगों के विचारों की अभिव्यक्ति का गला नहीं घोट रही है ? हमारे लिंकों में ऐसा क्या था, जो आपको आपत्तिजनक लगा ? मुझे आपका जवाब जरुर चाहिए. पहले खुद सुधारों, फिर दूसरों को सुधारने का प्रयास करो. यह मेरा प्रयास रहता है. आपने पहले भी जवाब देने की नैतिकता का पालन नहीं किया था. मेरे पास पुख्ता सबूत है या जो आपकी तारीफ करें या चापलूसी करें. उसको ही जवाब देती हैं. नैतिकता में गिरावट अच्छी नहीं होती हैं. अपना ध्यान रखें. आप कर सकें तो हमारी खूब अपनी पोस्ट में और फेसबुक पर आलोचना करना. मगर उचित तर्क-वितर्क होने चाहिए और क्रोध में आकर दोस्ती भी आप खत्म करना चाहें तो कर सकती हैं. हम कभी किसी से मनभेद नहीं रखते लेकिन अनेकों से मतभेद है.
      Divya Srivastava 7 घंटे पहले Divya Srivastava



      tumhari bakwaas jhel li....unfriend bhi kar diya....Good Bye !

      लगभग एक घंटा पहले · · 1

    • रमेश कुमार सिरफिरा आपके कुछ ही महीनों में हमारे प्रति कैसे विचार बदल गए सनद है आपको देखें-रमेश जी , अत्यंत शोधपरक आलेख है। गहन विवेचना की है आपने कानून की , उसमें त्रुटियों की एवं सुधार की।आपके विचारों से सहमत हूँ । सदियों पूर्व के नियम जो चले आ रहे हैं वे तेज़ी से बदलती परिस्थियों और समय के अनुकूल नहीं हैं। इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार की ज़रुरत है और सरकार के द्वारा सार्थक बदलावों की । . पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव पर
      ZEAL 5/16/11 को

      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा आज हमारी बातें बकवास हो गयी कल तक अच्छी थी देखें-आपने अपने नाम के आगे 'सिरफिरा' क्यूँ लिखा है ? आपका लेखन तो अत्यंत गहन विश्लेषणात्मक है। आपकी ऊर्जा एवं चिंतन से प्रभावित हूँ। . पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव पर, ZEAL -5/16/11 को
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, मुझे नहीं मालूम आपकी लेखनी के किस प्रशंसक ने आपकी उपरोक्त पोस्ट को इस लिंक http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_20.html पर चार चाँद लगाकर बहुत खूबसूरत बना दिया है. आप एक बार वहाँ जरुर जाकर आये. यहाँ आपको सिर्फ सूचित कर रहा हूँ. आपसे अपने हर ब्लॉग की हर पोस्ट पर टिप्पणी नहीं मांग रहा हूँ. मुझे तो अब कोई भीख भी नहीं देता है. फिर टिप्पणी(विचारधारा) क्यों दें या देंगा. पढ़े-लिखों की दुनियाँ में इस अनपढ़ व गंवार सिरफिरे की विसात कहाँ? इस पागल का कोई दिन-मान नहीं है.क्या पता किसको काटने दौड़ पड़ें?

      जरुर देखे."प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट"


      लगभग एक घंटा पहले · ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी,क्या यह शब्द आपके नहीं थें हमारे बारें में-ZEAL said....Ramesh ji , Reached here by the link you have provided on my post . Thanks. You are indeed a fearless writer and brutally honest as well. Best wishes ! रमेश जी, लिंक तुम मेरी पोस्ट पर उपलब्ध कराई है द्वारा यहाँ पहुँच गया है. धन्यवाद. आप वास्तव में एक निडर लेखक और क्रूरता के रूप में अच्छी तरह से ईमानदार हैं. शुभकामनाएं.
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, आज क्या मैं ईमानदार नहीं रहा ? आप अपने ब्लॉग पर तो मेरी टिप्पणी और प्रश्न हटा चुकी है यहाँ से हटाए. आपको कारण बताना चाहिए था कि मेरे लिंक में क्या कमी थी.
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, अगर आपने यह लिखा था कि "फेसबुकिया नागरिक चोरी भी करते हैं ? मेरी पिछली पोस्टों को "सुमित फंडे " तथा कुछ अन्यों ने चोरी से कट-पेस्ट कर अपनी वाल पर लगा ली! भ्रष्टाचार फेसबुक पर भी ? यदि पोस्ट पसंद आये तो शेयर करनी चाहिए, चोरी नहीं!--जनलोकपाल लाओ--भ्रष्ट चोर हटाओ--देश बचाओ !" और "आजाद भारत में हर व्यक्ति स्वतंत्र है अपनी बात कहने के लिए ! यदि पसंद ना आये तो व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करना चाहिए" लिख रही है. तब हमारे इस लिंक में क्या कमी थी देखें:-http://sirfiraa.blogspot.com/2011/12/blog-post_11.html

      लगभग एक घंटा पहले · ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, अगर आपने यह लिखा था कि-बुद्धिजीवियों को आलस्य त्याग देना चाहिए! यदि सारे बुद्धिजीवी अपने मतदान का प्रयोग करें तो इस "चौपट राजा" को गिराया जा सकता है और अपने देश को "अंधेर नगरी" से बनने से बचाया जा सकता है! नादान और मासूम जनता को छोटे-छोटे प्रलोभनों द्वारा आसानी से खरीदा जा सकता है, लेकिन बुद्धिजीवियों को फुसलाना आसान नहीं है ! तख्ता पलटो ! देश बचाओ ! --- वन्देमातरम ! और "माटी का कर्ज उतार दो , अपने देश के साथ प्रेम करके !" तब हमारे इस लिंक में क्या कमी थीं देखें:-http://rksirfiraa.blogspot.com/2011/12/blog-post_24.html

      लगभग एक घंटा पहले · ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, क्या यह आपकी कथनी और करनी हैं ? आप इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकती थीं. आप किसी की आलोचना कर सकती हैं, मगर सहन नहीं कर सकती. आप कहना ही जानती है कि "माटी का कर्ज उतार दो , अपने देश के साथ प्रेम करके !" आपकी उचित टिप्पणी पर उचित लिंक दिए थें. आज इतना पता चल गया कि आप चापलूस लोगों को ही पसंद करती हैं.
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा हम अपने दोस्तों को यह कहते हैं कि "दोस्तों, एक बात कहे. जब कभी आपको समय मिले तो हमारी पूरी "वाल" और ब्लॉग भी पढ़ें. आप हमारी प्रशंसा न करें मगर पढ़कर कुछ भी बुरा लगे तब आप स्वस्थ मानसिकता से हमारी निष्पक्ष होकर उचित तर्क-वितर्क करते हुए सभ्य भाषा में "आलोचना" जरुर करें. जिससे हमें लगे कि आप हमारे असली शुभचिंतक है. क्या आप बनना चाहोंगे मेरे शुभचिंतक ? यदि हाँ, तब अपनी यहाँ हाजिरी जरुर लगाओ.
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, क्या आप मुझे "बकवास" शब्द की परिभाषा बताएंगी, क्योंकि आप स्वयं एक बुध्दिजीवी वर्ग से है ?
      58 मिनट पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा मैं आदरणीय हमारी वाणी के संचालक से यह जानना चाहता हूँ कि आप भी हमारी उचित तर्कों के साथ की टिप्पणी को हटाएंगे. जैसा- काफी समय पहले भाई अनवर जमाल खान की टिप्पणियाँ और पोस्टों को हटा दिया गया था यानि विचारों की अभिव्यक्ति का गला घोटा जायेगा.
      53 मिनट पहले ·

1 टिप्पणी:

  1. Aaapne Sach bolkar dikha diya hai ki ...
    अभिव्यक्ति का गला घोटना ब्लोगिंग में मुमकिन ही नहीं है .

    Khair , Ab aap sher sunen ,

    बहार हो कि खिज़ां मुस्कुराए जाते हैं,
    हयात हम तेरा एहसाँ उठाए जाते हैं |
    सुलगती रेत हो बारिश हो या हवाएं हों,
    ये बच्चे फिर भ़ी घरौंदे बनाए जाते हैं |
    ये एहतमाम मुहब्बत है या कोई साज़िश,
    जो फूल राहों में मेरी बिछाए जाते हैं |

    जवाब देंहटाएं

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