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आईये! हम अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी में टिप्पणी लिखकर भारत माता की शान बढ़ाये.अगर आपको हिंदी में विचार/टिप्पणी/लेख लिखने में परेशानी हो रही हो. तब नीचे दिए बॉक्स में रोमन लिपि में लिखकर स्पेस दें. फिर आपका वो शब्द हिंदी में बदल जाएगा. उदाहरण के तौर पर-tirthnkar mahavir लिखें और स्पेस दें आपका यह शब्द "तीर्थंकर महावीर" में बदल जायेगा. कृपया "शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन" ब्लॉग पर विचार/टिप्पणी/लेख हिंदी में ही लिखें.

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

आप मुझे "बकवास" शब्द की परिभाषा बताएं ?

यह लिंक जरुर देखें-कैसे लोग चेहरे पर मुखौटा लगाए हुए है ?

हमारीवाणी एग्रीगेटर, Hamarivani.com के माध्यम से:


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    • रमेश कुमार सिरफिरा ‎@दिव्या श्रीवास्तव जी, आप खुद इसका कितना पालन करती है ? आप एक बुध्दिजीवी वर्ग से आती है यानि आप एक डाक्टर है. अपनी असभ्य भाषा खुद देखें. दिव्या श्रीवास्तव जी, लगता है आप हमसे नाराज है. जो देशहित और समाज हित के हमारे लिंकों बार-बार हटा देती हैं. क्या आप स्वयं भारत देश के प्रति ईमानदार है ? क्या आप स्वयं लोगों के विचारों की अभिव्यक्ति का गला नहीं घोट रही है ? हमारे लिंकों में ऐसा क्या था, जो आपको आपत्तिजनक लगा ? मुझे आपका जवाब जरुर चाहिए. पहले खुद सुधारों, फिर दूसरों को सुधारने का प्रयास करो. यह मेरा प्रयास रहता है. आपने पहले भी जवाब देने की नैतिकता का पालन नहीं किया था. मेरे पास पुख्ता सबूत है या जो आपकी तारीफ करें या चापलूसी करें. उसको ही जवाब देती हैं. नैतिकता में गिरावट अच्छी नहीं होती हैं. अपना ध्यान रखें. आप कर सकें तो हमारी खूब अपनी पोस्ट में और फेसबुक पर आलोचना करना. मगर उचित तर्क-वितर्क होने चाहिए और क्रोध में आकर दोस्ती भी आप खत्म करना चाहें तो कर सकती हैं. हम कभी किसी से मनभेद नहीं रखते लेकिन अनेकों से मतभेद है.
      Divya Srivastava 7 घंटे पहले Divya Srivastava



      tumhari bakwaas jhel li....unfriend bhi kar diya....Good Bye !

      लगभग एक घंटा पहले · · 1

    • रमेश कुमार सिरफिरा आपके कुछ ही महीनों में हमारे प्रति कैसे विचार बदल गए सनद है आपको देखें-रमेश जी , अत्यंत शोधपरक आलेख है। गहन विवेचना की है आपने कानून की , उसमें त्रुटियों की एवं सुधार की।आपके विचारों से सहमत हूँ । सदियों पूर्व के नियम जो चले आ रहे हैं वे तेज़ी से बदलती परिस्थियों और समय के अनुकूल नहीं हैं। इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार की ज़रुरत है और सरकार के द्वारा सार्थक बदलावों की । . पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव पर
      ZEAL 5/16/11 को

      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा आज हमारी बातें बकवास हो गयी कल तक अच्छी थी देखें-आपने अपने नाम के आगे 'सिरफिरा' क्यूँ लिखा है ? आपका लेखन तो अत्यंत गहन विश्लेषणात्मक है। आपकी ऊर्जा एवं चिंतन से प्रभावित हूँ। . पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव पर, ZEAL -5/16/11 को
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, मुझे नहीं मालूम आपकी लेखनी के किस प्रशंसक ने आपकी उपरोक्त पोस्ट को इस लिंक http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_20.html पर चार चाँद लगाकर बहुत खूबसूरत बना दिया है. आप एक बार वहाँ जरुर जाकर आये. यहाँ आपको सिर्फ सूचित कर रहा हूँ. आपसे अपने हर ब्लॉग की हर पोस्ट पर टिप्पणी नहीं मांग रहा हूँ. मुझे तो अब कोई भीख भी नहीं देता है. फिर टिप्पणी(विचारधारा) क्यों दें या देंगा. पढ़े-लिखों की दुनियाँ में इस अनपढ़ व गंवार सिरफिरे की विसात कहाँ? इस पागल का कोई दिन-मान नहीं है.क्या पता किसको काटने दौड़ पड़ें?

      जरुर देखे."प्रिंट व इलेक्ट्रोनिक्स मीडिया को आईना दिखाती एक पोस्ट"


      लगभग एक घंटा पहले · ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी,क्या यह शब्द आपके नहीं थें हमारे बारें में-ZEAL said....Ramesh ji , Reached here by the link you have provided on my post . Thanks. You are indeed a fearless writer and brutally honest as well. Best wishes ! रमेश जी, लिंक तुम मेरी पोस्ट पर उपलब्ध कराई है द्वारा यहाँ पहुँच गया है. धन्यवाद. आप वास्तव में एक निडर लेखक और क्रूरता के रूप में अच्छी तरह से ईमानदार हैं. शुभकामनाएं.
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, आज क्या मैं ईमानदार नहीं रहा ? आप अपने ब्लॉग पर तो मेरी टिप्पणी और प्रश्न हटा चुकी है यहाँ से हटाए. आपको कारण बताना चाहिए था कि मेरे लिंक में क्या कमी थी.
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, अगर आपने यह लिखा था कि "फेसबुकिया नागरिक चोरी भी करते हैं ? मेरी पिछली पोस्टों को "सुमित फंडे " तथा कुछ अन्यों ने चोरी से कट-पेस्ट कर अपनी वाल पर लगा ली! भ्रष्टाचार फेसबुक पर भी ? यदि पोस्ट पसंद आये तो शेयर करनी चाहिए, चोरी नहीं!--जनलोकपाल लाओ--भ्रष्ट चोर हटाओ--देश बचाओ !" और "आजाद भारत में हर व्यक्ति स्वतंत्र है अपनी बात कहने के लिए ! यदि पसंद ना आये तो व्यक्तिगत आक्षेप नहीं करना चाहिए" लिख रही है. तब हमारे इस लिंक में क्या कमी थी देखें:-http://sirfiraa.blogspot.com/2011/12/blog-post_11.html

      लगभग एक घंटा पहले · ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, अगर आपने यह लिखा था कि-बुद्धिजीवियों को आलस्य त्याग देना चाहिए! यदि सारे बुद्धिजीवी अपने मतदान का प्रयोग करें तो इस "चौपट राजा" को गिराया जा सकता है और अपने देश को "अंधेर नगरी" से बनने से बचाया जा सकता है! नादान और मासूम जनता को छोटे-छोटे प्रलोभनों द्वारा आसानी से खरीदा जा सकता है, लेकिन बुद्धिजीवियों को फुसलाना आसान नहीं है ! तख्ता पलटो ! देश बचाओ ! --- वन्देमातरम ! और "माटी का कर्ज उतार दो , अपने देश के साथ प्रेम करके !" तब हमारे इस लिंक में क्या कमी थीं देखें:-http://rksirfiraa.blogspot.com/2011/12/blog-post_24.html

      लगभग एक घंटा पहले · ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, क्या यह आपकी कथनी और करनी हैं ? आप इससे ज्यादा कुछ कर भी नहीं सकती थीं. आप किसी की आलोचना कर सकती हैं, मगर सहन नहीं कर सकती. आप कहना ही जानती है कि "माटी का कर्ज उतार दो , अपने देश के साथ प्रेम करके !" आपकी उचित टिप्पणी पर उचित लिंक दिए थें. आज इतना पता चल गया कि आप चापलूस लोगों को ही पसंद करती हैं.
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा हम अपने दोस्तों को यह कहते हैं कि "दोस्तों, एक बात कहे. जब कभी आपको समय मिले तो हमारी पूरी "वाल" और ब्लॉग भी पढ़ें. आप हमारी प्रशंसा न करें मगर पढ़कर कुछ भी बुरा लगे तब आप स्वस्थ मानसिकता से हमारी निष्पक्ष होकर उचित तर्क-वितर्क करते हुए सभ्य भाषा में "आलोचना" जरुर करें. जिससे हमें लगे कि आप हमारे असली शुभचिंतक है. क्या आप बनना चाहोंगे मेरे शुभचिंतक ? यदि हाँ, तब अपनी यहाँ हाजिरी जरुर लगाओ.
      लगभग एक घंटा पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा डॉ.दिव्या श्रीवास्तव जी, क्या आप मुझे "बकवास" शब्द की परिभाषा बताएंगी, क्योंकि आप स्वयं एक बुध्दिजीवी वर्ग से है ?
      58 मिनट पहले ·

    • रमेश कुमार सिरफिरा मैं आदरणीय हमारी वाणी के संचालक से यह जानना चाहता हूँ कि आप भी हमारी उचित तर्कों के साथ की टिप्पणी को हटाएंगे. जैसा- काफी समय पहले भाई अनवर जमाल खान की टिप्पणियाँ और पोस्टों को हटा दिया गया था यानि विचारों की अभिव्यक्ति का गला घोटा जायेगा.
      53 मिनट पहले ·

शनिवार, 23 जुलाई 2011

सच लिखने का ब्लॉग जगत में सबसे बड़ा ढोंग-सबसे बड़ी और सबसे खतनाक पोस्ट

दोस्तों, आप सब अच्छी तरह से परिचित होंगे कि-मैं कलम का सिपाही हूँ. मगर मेरे कुछ निजी कारणों से मेरी कलम का लेखन काफी समय से बंद था. अपनी निजी समस्यों के चलते मेरा परिचय 11 जुलाई 2010 को ब्लॉग जगत से परिचय हुआ. जानकारी के अभाव में सर्वप्रथम हम उसे एक वेबसाइट समझ बैठे. मगर अचानक 19 जुलाई 10 को एक कमाल हो गया. हम अपना भी ब्लॉग बना बैठे. मगर फिर जानकारी के अभाव में अगले 12 दिनों तक उस पर कुछ नहीं लिख सकें. अब हमें ब्लॉग जगत पर लिखते हुए कोई लगभग एक साल होने को है. अपनी निजी समस्याओं के चलते वैसे हमने ज्यादा नहीं लिखा. मगर जितना लिखा, उतना सच लिखा. जहाँ एक ओर ब्लॉग जगत में अनेकों मित्र मिले, दूसरी ओर क़ानूनी ज्ञान देने वाले गुरुवर श्री दिनेश राय द्विवेदी जी जैसे गुरु मिले. जिन्होंने कदम-कदम पर निराशा के बादलों को दूर करके आशा में बदलने की कोशिश की, मगर हमारी भ्रष्ट न्याय व्यवस्था में अब तक कोई सफलता नहीं मिली. लेकिन उनके मार्गदर्शन में प्रयासरत हूँ.अनेक मित्रों  ने तकनीकी ज्ञान देकर काफी मदद की और कुछ हमारे सच लिखने के कारण अपने आप हमारे दुश्मन कहूँ या आलोचक बन बैठे. हम समाचार पत्र-पत्रिकाओं से जुडे होने के कारण ब्लॉग जगत की चालों और रणनीतियों के साथ कलाकारी से बिल्कुल अनजान थें. यहाँ पर सच लिखने का सबसे बड़ा ढोंग और सच कहने का ढोंग छुपकर किया जाता है. अपने एक साल के अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ कि-यहाँ पर लोग सीने पर वार करने वाले कम और पीठ में छुरा घोपने वाले ज्यादा है. आज भी ब्लॉग जगत में कहा जा रहा कि-लगभग 12 हजार हिंदी के ब्लॉग सक्रिय है. लेकिन उस में से लिखते बेशक 11 हजार ब्लॉग सच हो. मगर उनमें से अंधिकांश अपना पता, नाम, ईमेल और फोन नं आदि सब छुपाकर लिखते हैं और आये दिन वहाँ पर प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक्स  मीडिया की गिरती नैतिकता से संबंधित लेख और चर्चा प्रकाशित होती है. मैं भी मानता हूँ कि आज प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक्स  मीडिया भी पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुकी है. मगर आज भी कोई समाचार या नया चैनल शुरू होता है. वो पहले तो खुलकर सीने पर गोली खाने की बात करता है. फिर मज़बूरीवश पीठ दिखा देता है. लेकिन भारत सरकार के विभाग आर.एन.आई के नियमों का पालन करते हुए समाचार पत्र में अपना नाम, पता और फोन नं. तक हर समाचार पत्र में लिखता है. ब्लॉग जगत की तरह छुपकर तो कुछ नहीं कर रही है.
             ब्लॉग  जगत अभी ना पूरी तरह से हमारे विचारों और निडरता से परिचित नहीं है. इन दिनों हमारी निजी समस्याओं के कारण कुछ दिमागी रूप से परेशान भी है. कुछ ब्लोग्गरों ने हमारे ऊपर चारों तरफ से अचानक हमला कर दिया. जिसमें अनेक लोगों ने हमें नीचा दिखाने के साथ ही "बड़ा" ब्लोग्गर कह कर मजाक बनाया. फिर हम कहाँ कम थें. अपने पक्के उसूलों और सिध्दांतों के बल पर भिड गए. खुली चुनौती दें दी. अगर दम रखते हो तो जितना हम कहते और करते. उतना तुम करके दिखा दो. अभी तक उनकी ओर से ऐसे संकेत नहीं मिले. मगर हालत ऐसे बन गए कि उनमें खुद ही एक-दूसरे से असहमत होने के कारण फूट पड़ती दिख रही हैं.अच्छा दोस्तों, साथ अपने ऊपर हुए हमले से संबंधित थोड़ी-थोड़ी जानकारी देते चले. शेष फिर.........(क्रमश:)
 शुक्रवार, 15 जुलाई 2011 को "भारतीय ब्लॉग समाचार"  
नामक ब्लॉग पर निन्मलिखित पोस्ट प्रकाशित हुई.
नए प्रबंध मंडल का स्वागत करे
भारतीय ब्लॉग समाचार के सञ्चालन के लिए एक प्रबंध मंडल का गठन किया गया था. कुछ अपरिहार्य कारणों से उक्त गठन निरस्त करना पड़ा, इस सम्बन्ध में यदि कोई सज्जन चाहे तो व्यक्तिगत रूप से जानकारी ले सकता है. हम चाहते है की इस मंच की जिम्मेदारी वे लोग ही उठाये जो अपना निजी ब्लॉग संचालित करते हैं. नई जोश और नई चुनौतियों के साथ ....  नए मंडल के पद और कार्य इस प्रकार हैं.
शिखा कौशिक जी -- प्रधान संपादक .. आपके पास इस मंच का पूर्ण अधिकार होगा. आप किसी भी लेखक को जोड़ या हटा सकती है. किसी भी खबर को सम्पादित कर सकती है या नियम के विपरीत होने पर हटा सकती है, मंच को बेहतर बनाने के लिए आप हमें सुझाव दे सकती है.
सह-संपादक -- कुणाल वर्मा व सौरभ दूबे ---- आपकी जिम्मेदारी यह है की आप दोनों लोग शिखा जी का सहयोग करेंगे. किसी भी लेख के आपत्तिजनक होने पर आप संशोधन या हटाने के सम्बन्ध में प्रधान संपादक से विचार-विमेश करेंगे.
सलाहकार संपादक --- आशुतोष नाथ तिवारी , एस एम मासूम , इंजी. सत्यम शिवम्, सलीम खान --- आप सभी लोग वरिष्ठ व अनुभवी ब्लोगर है. आपके सुझाव के अभिलाषी हम भी सदैव रहते हैं. आप लोगो से अनुरोध है की समय समय पर अपने अनुभवों से संपादको को सुझाव देते रहे.
प्रसार व्यवस्थापक -- रमेश कुमार जैन उर्फ़ सिरफिरा -- रमेश जी, मैं देखता हूँ आप कई ब्लोगों पर आवागमन करते रहते हैं. मंच के प्रसार-प्रचार में आप बेहत योगदान देंगे यह मेरा विश्वाश है.आप सभी को शुभकामना.

हमें बिना कोई जानकारी के कोई कुर्सी कहूँ या पद दे दिया गया तब हमने वहाँ  टिप्पणी छोड़ी और एक पोस्ट लगा दी. हमारी पोस्ट लगाने के ब्लॉग जगत में खलबली सी मच गई.किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था.उसमें कई टिप्पणियाँ भी आ गई. नीचे देखे वो पोस्ट, जो हटा दिए जाने की आशंका के चलते के मित्र ने कॉपी करके रख ली थी.

रमेश कुमार जैन ने ‘सिरफिरा‘ दिया 


नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं

मेरे बड़े भाई हरीश सिंह जी, आपने इस नाचीज़ "सिरफिरा" को "प्रसार व्यवस्थापक" के पद के योग्य पाया है. उसके लिए आपका दिल की गहराइयों से शुक्रगुजार हूँ. जब आपने मुझे "सहयोगी" के रूप में शामिल किया था.तब मैंने लिखा था कि-आपने मुझे इसमें शामिल करके जो मान-सम्मान दिया है. उसका शुक्रगुजार हूँ. मगर फ़िलहाल कुछ निजी समस्याओं के कारण मैं ज्यादा योगदान देने में असमर्थ रहूँगा.
            मुझे आपसे एक शिकायत है कि आपने एक बार मुझे फोन करके या ईमेल भेजकर नहीं पूछा. मेरा विचार आपको "प्रसार व्यवस्थापक" बनाने का है. आप क्यों एक तरफा फैसले लेते हैं? मुझे ऐसी कुर्सी नहीं चाहिए. जिसके लिए मैं मानसिक रूप से तैयार न होऊं.मुझे "नाम" नहीं "काम" चाहिए. जब मैं काम करने में असमर्थ हूँ. तब नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं है. हमारे देश में कुर्सी के लिए स्वार्थी लोगों/नेताओं क्या कोई कमी है? आप मेरे संदर्भ में कोई भी फैसला लेने से पहले मुझसे बातचीत जरुर करें. उपरोक्त "प्रसार व्यवस्थापक" पद के नियमों-शर्तों और जिम्मेदारियों से अवगत करवाए बिना मुझे पद नहीं देना चाहिए था. अगर आप चाहते हैं कि-पद पर बना रहूँ तब आप मुझे नियमों-शर्तों और जिम्मेदारियों से अवगत करवाए. अगर ऐसा करने में असमर्थ हैं.तब आप मेरा इस्तीफा स्वीकार करें. मुझे उपरोक्त पद के बारें में जानकारी प्रदान करें कैसे "प्रचार" की व्यवस्था बनाकर रखनी होगी? कितने व्यक्ति है जो मेरे अंतर्गत कार्य करेंगे और कितने लोग ने इस पद के लिए मेरे नाम का समर्थन किया था? क्या यहाँ(ब्लॉग जगत) में कोई भी कुर्सी कोई भी ले सकता है. मैं पद की "गरिमा" का सम्मान करते हुए कह रहा हूँ. कल को मेरे कार्य के संतोषजनक न होने पर आप हटा दें, उससे पहले मैं स्वयं एक तरफा लिए फैसले के कारण पद से त्याग पत्र देता हूँ. मेरे पास एक प्रकाशन परिवार के साथ पहले ही अनेक जिम्मेदारियां है. इसलिए बिना नियमों-शर्तों और जिम्मेदारियों से अवगत हुए पद ग्रहण नहीं कर सकता हूँ और अवगत कराने पर पद स्वीकार करने को तैयार भी हूँ. लेकिन मेरी निजी समस्याओं को देखते हुए मेरे कार्य की समीक्षा करने को पूरा ब्लॉग जगत और प्रबंध मंडल निर्णय लेने में काबिल हो तो और मेरे निजी कारणों में कुछ सहायता करने की हामी भरें. वैसे ब्लॉग जगत में एक "दिखावा" की दुनियां कायम हो रही हैं. जिसको मैं पसंद नहीं करता हूँ.
 मैंने अपना एक नया शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय ब्लॉग बनाया है. जिसमें मुझे बहुत से शोध कार्य करने हैं. मैंने भी अपने गुरुवर श्री दिनेश राय द्विवेदी जी को उसमें शामिल करने का मेरा मन है.मगर मैंने पहले उनकी अनुमति प्राप्त करना उचित समझा. इसका उदाहरण आप यहाँ देख सकते हैं.
अगर आप मेरे अन्य ब्लॉग को पढ़ने के इच्छुक है. तब आप सभी पाठकों और दोस्तों से हमारी विनम्र अनुरोध के साथ ही इच्छा हैं कि-अगर आपको समय मिले तो कृपया करके मेरे "सिरफिरा-आजाद पंछी", "रमेश कुमार सिरफिरा", सच्चा दोस्त, आपकी शायरी, मुबारकबाद, आपको मुबारक हो, शकुन्तला प्रेस ऑफ इंडिया प्रकाशन, सच का सामना(आत्मकथा), तीर्थंकर महावीर स्वामी जी, शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय और शकुन्तला महिला कल्याण कोष, मानव सेवा एकता मंच एवं  चुनाव चिन्ह पर आधरित कैमरा-तीसरी आँख (जिनपर कार्य चल रहा है) ब्लोगों का भी अवलोकन करें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. आप हमारी या हमारे ब्लोगों की आलोचनात्मक टिप्पणी करके हमारा मार्गदर्शन करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे. हम आपकी आलोचनात्मक टिप्पणी का दिल की गहराईयों से स्वागत करने के साथ ही प्रकाशित करने का आपसे वादा करते हैं 
-निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा"
हत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा, यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें. हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है. आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें  क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे?  नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें

4 टिप्पणियाँ: DR. ANWER JAMAL ने कहा…1- प्रिय भाई हरीश जी ने आपके बारे में भी वही ग़लती दोहरा दी है जिस पर आदरणीय महेन्द्र जी ने उन्हें टोका था। ऐसा लगता है कि उन्होंने किसी से भी नहीं पूछा और सबको पद दे दिए। अब हो यह रहा है कि हरेक आदमी पद पर ठोकर मार रहा है। इससे इस सम्मानित समाचार पत्र की गरिमा पर आंच आ रही है। हरीश जी से ऐसी ग़ैर ज़िम्मेदारी की उम्मीद नहीं थी कि वह आपको आपकी ज़िम्मेदारियों तक से अवगत नहीं कराएंगे। इस बात को लेकर तो उन्होंने बहुत सी जगह अपने से प्यार करने वाले एक सीनियर ब्लॉगर की आलोचना में पोस्ट भी बनाई थी कि ‘अमुक भाई एक ग़ैरज़िम्मेदार आदमी हैं।‘ क्या इसे पर उपदेश कुशल बहुतेरे कहा जाएगा ? 2- मंच अपने कंधों पर चलाए जाते हैं। अगर ख़ुद न संभाला जा सके तो अपने जी के लिए जंजाल खड़े करना ठीक नहीं है। जो भी काम किया जाए उसे पूरी ज़िम्मेदारी से ही करना चाहिए। 3- आपकी समस्या से हम भी चिंतित हैं। मालिक से आपके लिए मुक्ति की प्रार्थना करते हैं कि आपकी समस्या दूर हो और आपके घर में ख़ुशियां लौटें।१५ जुलाई २०११ ११:०७ पूर्वाह्न 

रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" ने कहा…डॉ अनवर जमाल साहब जी, चरण बिंदु एक के आपके पहले पैराग्राफ से पूरी तरह से सहमत हूँ. दूसरे पैराग्राफ में लिखी यह ‘अमुक भाई एक ग़ैरज़िम्मेदार आदमी हैं।‘ बात मैंने कही पढ़ी नहीं है. इसलिए इसका लिंक मुझे उपलब्ध करवाए. अपनी पोस्ट में लिखी एक एक बात पर अटल हूँ.बेशक आज गरीब हूँ. मगर पैसों के लिए कभी अपना ईमान व जमीर नहीं बेचा है. चरण बिंदु दो का भी पूरा समर्थन करता हूँ.एक नया ब्लॉग बनाने ज्यादा से ज्यादा तीन-चार घंटे लगते हैं या होंगे.लेकिन उस पर शोध और उसकी रणनीति पर बहुत समय देने की जरूरत होती है.आप किसी से पूछे बिना ही किसी कुर्सी की जिम्मेदारी नहीं दे सकते हैं. मैं अब भी कह रहा मुझे जिम्मेदारियों से अवगत करा दो. पद से त्याग पत्र नहीं दूँगा.मैं किसी ब्लॉग को सिर्फ इसलिए नहीं पढता कि उसको लिखने वाला मुसलमान है या हिंदू है.बल्कि यह देखता हूँ वो अपने लेखन को किसके लिए कर रहा है.अपने लेखन पर उसने कितना शोध किया है.कितना सच लिख रहा है.जैसे-कोई यह लिखें फलां मंत्री बहुत ईमानदार है और दुनियां जानती है.वो दुनियां का सबसे बड़ा बईमान है. चरण बिंदु तीन के लिए आपका धन्यवाद. आपकी दुआओं की हम पर ऐसे ही खुदा करें इनायत बरसे. पोस्ट प्रकाशित होने के बाद ऑनलाइन वार्तालाप का एक नमूना :- ७:२१ अपराह्न editor.bhadohinews: kyo naraz hai bhai, namaskar ७:२३ अपराह्न मुझे: नाराज होने का हक छोटे भाई के पास ही होता है. ७:२४ अपराह्न आपको इतना बड़ा फैसला नहीं लेना चाहिए था. ७:२५ अपराह्न जबकि शायद आप मेरी परशानियों से भली-भांति अवगत थें. ७:२६ अपराह्न क्या आप हमारी परेशानियों को मजाक समझते हैं एक बार मेरे ब्लोगों का एक एक शब्द पढकर देख तो लो. ७:२७ अपराह्न मैं काल्पनिक कथा वाचक नहीं हूँ.१५ जुलाई २०११ १२:५९ अपराह्न


DR. ANWER JAMAL ने कहा…प्रिय रमेश कुमार जी ! सलीम खान एक ग़ैर जिम्मेदार व्यक्त शीर्षक वाली पोस्ट ‘भारतीय ब्लॉग लेखक मंच‘ में लोकप्रियता की सूची में नज़र आ जाती है। ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ पर भी यह मौजूद है। इसमें हरीश जी ने कहा था कि सलीम भाई ने ब्लॉग की परिकल्पना की, जिसे चाहा अध्यक्ष बना दिया, जिसे चाहा पद वितरित कर दिया. जिन पदों पर जो लोग रखे गए उनमे से किसी को भी जिम्मेदारी नहीं बताई गयी. आपके नेक जज़्बात की क़द्र करता हूं। धन्यवाद !१५ जुलाई २०११ ५:३७अपराह्न
DR. ANWER JAMAL ने कहा…And see this post सलीम खान एक गैरजिम्मेदार व्यक्ति 3/06/2011 01:12:00 AM हरीश सिंह 10 comments १५ जुलाई २०११ ५:३९ अपराह्न 
‘ब्लॉग की ख़बरें‘ आपको हर ताज़ा हलचल की जानकारी देता रहेगा, हिंदी ब्लॉग जगत का सबसे पहला समाचार पत्र उसके  बाद चला विचारों के आदान-प्रदान का दौर सच और झूठ के बीच में.

10 comments:

DR. ANWER JAMAL said...जैसी कि आशंका व्यक्त की जा रही थी, वही हुआ। श्री रमेश कुमार जैन जी की पोस्ट को हटा दिया गया। ख़ैर, वह यहां सुरक्षित है। भारतीय ब्लॉग मंच की ओर से यह स्टेटमेंट जारी किया गया है :भारतीय ब्लॉग समाचार '' ब्लॉग पर केवल ब्लॉग से सम्बंधित खबरे प्रकाशित की जाएँगी .इसे निजी वार्तालाप ;आक्रोश ,क्षमा प्रार्थना आदि पोस्ट का मंच न बनायें .अनुशासन व् नियमों को दबंगई का नाम न दे .भावुकता विचारों की प्रखरता को अवरूद्ध कर देती है .कुछ पोस्ट इस ब्लॉग की गरिमा व् उदेश्य के अनुरूप नहीं हैं -इसलिए हटाई जा रही हैं .ये लेखन की स्वतंत्रता पर आघात नहीं है -यह मात्र इस ब्लॉग के उदेश्यों व् नियमों का पालन करने का प्रयास है .व्यक्तिगत हित के स्थान पर सामूहिक हित को महत्त्व देते हुए इस कार्यवाही को अंजाम दिया जा रहा है .सभी सम्मानित सदस्यों से आग्रह है कि भविष्य में इन बातों का ध्यान रखें -*इस ब्लॉग पर ब्लॉग-जगत से सम्बंधित ब्लॉग-पोस्ट ही प्रकाशित करें . http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html July 17, 2011 11:14 AM
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...मैंने उपरोक्त पोस्ट के नीचे कुछ टिप्पणियाँ पोस्ट की है.आप भी गौर करें.उपरोक्त ब्लॉग पर गुंडाराज की जीत हुई.सच की हार और झूठ की जीत.मेरा नाम "सहयोगी" में से क्यों नहीं हटाया गया. मेरी पोस्ट को हटाने के लिए ७ प्रबंध मंडल सदस्य और ११ सहयोगियों में से किनते प्रतिशत वोट या विचार बने.विचार फोन पर बने या ईमेल से या सहयोगियों की टिप्पणियों से.इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक करों.ईमेल को और टिप्पणियाँ सार्वजनिक होनी चाहिए.बेशक पोस्ट को न करों.मगर होना चाहिए सब कुछ सार्वजनिक.नहीं तो उपरोक्त ब्लॉग को व्यक्तिगत घोषित किया जाना चाहिए.मुझे पता चलना चाहिए मुझे दूषित मानसिकता से पीड़ित बताने वाले खुद कितने ईमानदार है.July 17, 2011 5:58 PM
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...मेरे दोस्तों/शुभचिंतकों/आलोचकों-दोस्तों/शुभचिंतकों अब आप मेरे लिए दुआ करों, क्योंकि अब ब्लॉग जगत में मेरे खिलाफ एक अभद्र भाषा में पोस्टें प्रकाशित होगी. जिससे आपको यह पता चलेगा कि-बुध्दिजीवी वर्ग के कितने बड़े-बड़े सूरमों का यहाँ एक छत्र राज चलता है. मेरे आलोचकों- मुझे खूब अपशब्द कहो और खूब अपशब्द वाली मेरे बारें में पोस्ट लिखो और ईमेल भेजों, फोन व लैटर से धमकियाँ दो, क्योंकि मैंने अपना पूरा पता और सभी फोन नं. सार्वजनिक कर रखें हैं और तुम्हारे डर से हटाऊंगा भी नहीं, कायरों की तरह नहीं मारूंगा. गुंडागर्दी करों, सुपारी दे दो मेरे नाम की. देखूं तुम कितने निम्न स्तर तक जा सकते हो. मेरे आलोचक बनते हो तो क्यों नहीं खुलकर आते हो. कर दो तुम भी अपना फोन और पता सार्वजनिक. लोगों पता चल जाए कि-कौन कितना देश और समाज का भला चाहता है.क्यों सीमित कर रखा अपने आपको चंद ब्लॉगर पाठकों तक. करने दो आम लोगों को आपको फोन, सुनो उनकी समस्याएं कर दो उनको अपने ब्लोगों पर पोस्ट. मगर सच को नहीं झुठला सकते हो. यहाँ उपरोक्त ब्लॉग पर "सच" बेचा और दबाया नहीं जाता है.बल्कि "सच" को हटा दिया जाता है. . मेरे साथ भी इस ब्लॉग पर अन्याय किया गया. मैं भी इस ब्लॉग का एक सहयोगी था. आपको अवगत करने के उद्देश्य से पूरी घटना सिलेवार है. मुझे ९ जुलाई का पता चला उपरोक्त ब्लॉग की संरचना हुई है. तब मैंने नीचे लिखी टिप्पणी कर दी.भाई हरीश सिंह जी, आपका यह काफी अच्छा प्रयास है. इससे कुछ ब्लागरों एक नई पहचान मिलेगी.जो निर्स्वार्थ भावना से ब्लॉग जगत में आये है और देश,समाज व आम-आदमी के हितों हेतु जन-आंदोलन चलाना चाहते हैं. कई बार ऐसा होता है कि-एक अच्छे इंसान की विचारधारा लोगों तक नहीं पहुँच पाती है.तब वो बेचारा गुमनामी के अंधरों में कहीं खो जाता है. आपका उपरोक्त यह मंच ऐसे लोगों सामने लाकर परोपकार का काम करेगा.९ जुलाई २०११ १:०७ अपराह्न अगर पूरा ब्लॉग जगत गंभीर हो जाएगा तब एक बेहतर मीडिया बनकर उभर सकता है.आपका बहुत अच्छा प्रयास है.आपने मुझे इसमें शामिल करके जो मान-सम्मान दिया है.उसका शुक्रगुजार हूँ.मगर फ़िलहाल कुछ निजी समस्याओं के कारण मैं ज्यादा योगदान देने में असमर्थ रहूँगा.९ जुलाई २०११ १२:४७ अपराह्न July 17, 2011 6:00 PM
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...उसके बाद एक ऑनलाइन मुझे लिंक दिया गया और नए प्रबंध मंडल का स्वागत करे उपरोक्त पोस्ट देखने को कहा गया. तब मैंने विरोध स्वरूप एक टिप्पणी(कुछ बाते लिखना भूल गया था, क्योंकि मैं दो साल तक डिप्रेशन की बीमारी ग्रस्त रहा हूँ.) की थी और फिर एक पोस्ट http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html "नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं" नामक से लिखी थी. जो यहाँ से हटा दी गई है. जिसको फ़िलहाल एक नए शीर्षक रमेश कुमार जैन ने ‘सिर-फिरा‘ दिया"" से "ब्लॉग की खबरें" पर देखा जा सकता है. उसके बाद एक पोस्ट मानवीय भूल होने http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_16.html, पोस्ट प्रकाशित हुई. जो अब हटा दी गई है. मैंने फिर दो टिप्पणी की,वो भी हटा दी गई. जो नीचे लिखी हुई है.
श्रीमान जी, आपने मुझे एक तरफा दी जिम्मेदारी से मुक्त करके अहसान किया है. उसका धन्यवाद स्वीकार कीजिये. वैसे मैंने कभी "प्रचारक" का कार्य नहीं किया. इसलिए उसकी समझ नहीं है. क्या अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करने के लिए उसकी "भूमिका" की जानकारी प्राप्त करना गुनाह है. अगर आपकी विचारधारा मुझे "गुनाहगार" मानती है.तब मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं है. क्या हर व्यक्ति को हर कार्य की "समझ" होती है? होती होगी मुझे तो नहीं है. आपको दुःख नहीं होना चाहिए बल्कि दुःख हमें मनाना चाहिए आप जैसे बड़े भाइयों का हमें साथ छोड़ना पड़ रहा, बिना जानकारी दिए "पद" दिए जाने के कारण. मुझे खुशी है कि आपने हमारा इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया हैं. अगर अनजाने में कोई गलती हो गई हो क्षमा प्रार्थी हूँ. मुआवजा के तौर पर कागज के टुकड़े नहीं है, मगर फिर भी 23 जुलाई को जैन धर्म का "अमल*" का एक व्रत आपके नाम. *जिसमें एक समय एक स्थान पर बैठकर एक तरह का अन्न(आनाज)को बिना किसी स्वाद** के खाना होता है.**जैसे-उसमें नमक या मीठा,इसमें भुने हुए चने, सादा चावल, सादी रोटी आदि आती है.July 17, 2011 6:00 PM
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...मेरे बड़े भाई हरीश सिंह (ज्ञान के भंडार)जी, आपने अनवर भाई के लिए लिखा कि-आप हमारे बड़े हैं, और एक ऐसे ही मंच के संचालक भी है. आप द्वारा की जा रही पोस्ट व टिपण्णी आपकी गरिमा के अनुरूप नहीं है.हम आपसे सहयोग की अपेक्षा करते हैं पर हमें लगता है आप मेरी टांग खींचना बंद नहीं करेंगे.आपको यह अज्ञानी,मूर्ख और सिरफिरा सभी इतना कहना चाहता है कि-कोई टांग खींचने वाला होना ही चाहिए.अब जब आप अपनी गलती की माफ़ी मांग चुके है. इस मंच को रणभूमि नहीं बना चाहता हूँ. इस अज्ञानी से कोई गलती हो गई तो माफ कर देना.वैसे अपनी गलती का जैन धर्म की तपस्या करके अपने पाप कम करने की कोशिश भी 23 जुलाई 2011 को करूँगा. लेकिन नीचे लिखी एक बात जरुर पढ़े.
मेरे पास पिछले दिनों बहुत असभ्य भाषा में टिप्पणियाँ आई. तब मैंने उनके साथ वैसा ही व्यवहार नहीं करते हुए कहा कि-आप गुमनाम नाम से असभ्य भाषा में टिप्पणी करते हैं. आप स्वस्थ मानसिकता से तर्क-वितर्क करें. तब मैं आपसे स्वस्थ बहस करने के लिए तैयार हूँ और मेरी कमियों की निडर होकर आलोचनात्मक टिप्पणी करें. मुझे खुद अपनी कमी(गलती) दिखाई नहीं देंगी. जिस तरह से फूलों के साथ काँटों का होना स्वाभाविक है, ठीक उसी तरह अच्छाइयों के साथ बुराइयों का होना भी स्वाभाविक है. लेकिन हर मनुष्य में योग्यता है कि वो अपनी बुराइयों को जानकर उनको अच्छाइयों में बदलने का प्रयास कर सकता है. उसके बाद उन व्यक्तियों की टिप्पणियाँ अच्छी और बुरी,सभ्य भाषा में आ रही है और उनको मैं प्रकाशित भी कर रहा हूँ. उनके द्वारा बताई गलतियों में समय-समय पर सुधार भी कर रहा हूँ, क्योंकि संत कबीर दास जी कहते हैं कि "निंदा करने वाले व्यक्ति को शत्रु न समझकर 'सच्चा मित्र' ही मानिए. उसे सदा अपनी समीप रखिए, यहाँ तक कि उसके लिए अपने आंगन में झोंपड़ी बनाकर उसके रहने की व्यवस्था कर दीजिए यानि उसके लिए सब सुविधायें जुड़ा दीजिए" इसका लाभ यह है कि-"निंदा करने वाला व्यक्ति पानी और साबुन के बिना ही आपके स्वभाव और चरित्र को धो-धोकर निर्मल बना देगा" तात्पर्य यह है कि "निंदा के भय से व्यक्ति सज़ग रहेगा, अच्छे काम करेगा और इस प्रकार उसका चरित्र अच्छा बना रहेगा" उसके बाद एक पोस्ट ब्लॉगर श्री रोहित सिंह जी की प्रकाशित हुई. फिर एक पोस्ट http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html प्रधान संपादक शिखा कौशिक की प्रकाशित(जो अब हटा दी गई है) हुई.जिसमें मेरी पोस्ट को हटाने के लिए सहयोगियों और पाठकों से विचार आमंत्रित किये गए.जिसका नतीजा घोषित किये बिना मेरी पोस्ट को हटा दिया गया. अगर पोस्ट हटाना जरुरी था.तब प्रकाशित होते ही क्यों नहीं हटाया या फिर विचार क्यों आमंत्रित किये? जब उसका नतीजा मुझे दिखाए बिना हटानी थीं. जब सारी ताकत प्रबंध मंडल के पास है. तब यह ढोंग क्यों राय बनाने और विचार आमंत्रित करने का? इस समस्या को पैदा ही क्यों किया गया? लापरवाही हुई माफ़ी मांगी गई थीं. फिर क्यों मेरी पोस्ट को "विवाद" बनाया गया? क्यों दिलों में द्वेष भावना रखी जाती है? अगर यह समस्या लग रही थी.तब क्यों नहीं दोनों पक्षों को तीन-चार लोगों(वकीलों) से क़ानूनी सलाह दिलवाई गई? एक तरफा फैसला क्यों लिया गया? इससे पहले भी लिया जा सकता था.इस पोस्ट के प्रकाशित होते ही मैंने नीचे लिखी टिप्पणी कर दी थीं. मगर मेरी टिप्पणी से पहले एक टिप्पणी श्रीमती शालिनी कौशिक जी की आ चुकी थी. जो नीचे है.July 17, 2011 6:01 PM 
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...श्रीमती शालिनी कौशिक जी ने कहा-प्रिय शिखा जी, रमेश जी इस ब्लॉग के सम्मानित सदस्य हैं और ये उनका अधिकार है कि वे भी अपने विचार इस मंच से साझा कर सकें, किन्तु जैसे कि ये मंच ब्लॉग की ख़बरों के लिए है न कि किसी ब्लोग्गर विशेष की निजी ख़बरों के लिए. ऐसे में उनकी पोस्ट का यहाँ कोई औचित्य नहीं है और आपको इस पोस्ट को यहाँ से हटाने का पूरा पूरा अधिकार है. आदरणीय रमेश जी, मैं हमेशा सही का साथ देती हूँ ओर आप ये भी जान लें कि मैं आपकी विरोधी नहीं हूँ ओर आपके ब्लॉग मेरे लिए ज्ञान का भंडार हैं ओर जहाँ मैंने आपकी पोस्ट हटाने की अनुशंसा की थी वहां मैं आपकी पोस्ट का कोई औचित्य नहीं समझ रही थी
आदरणीय शिखा कौशिक जी, चरण बंदना. आप अपनी प्रोफाइल में कहती हैं कि-मैं एक शोध छात्रा हूँ.समस्त मानव जाति मेरा परिवार है और मैं अपने आस-पास विचरण करने वाले जीवों को भी उतना ही स्नेह करती हूँ.जितना अपने परिवार से.ब्लॉग जगत में आप सभी के स्नेह की अपर आकांक्षा है. मैं भी आप सभी के सामने बहुत तुच्छ सा जीव हूँ. तब मेरे प्रति आपका स्नेह कहाँ गया? आप बेशक उपरोक्त पोस्ट को भी हटा दें, मगर साथ में BBS News के सहयोगी के रूप में दर्ज मेरा नाम भी हटा दिया जाए.जहाँ दवाब में फैसले लिए जाते हो, वहाँ यह सिरफिरा रह भी सकता हैं. आपके ऊपर किसका दवाब है, क्या यहाँ पर विज्ञापन नहीं मिलेंगे? जब किसी से बगैर पूछे गलती होती है. उस गलती को हमेशा के लिए मिटा देना चाहते है.बल्कि उसको अपने शीर्षक में सजाकर रखना चाहिए.जिससे हमेशा याद रहे और दुबारा गलती न हो.July 17, 2011 6:01 PM 
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...मैं श्रीमती शालिनी कौशिक के ऊपर लिखित विचारों से भी असहमत हूँ. एक तरफ मेरे अधिकारों की बात करती हैं और दूसरी तरफ मेरी समस्यों को निजी खबरे बताती है. क्या जब "पद" दिया जा रहा था. तब मेरी निजी समस्या कहाँ चली गई थीं? अगर आप मेरी पोस्ट हटा हैं तब यह एक ब्लॉग जगत की नई गुंडागर्दी होगी. मेरी पोस्ट में क्या कोई अपशब्द है? क्या उसमें गुप्त अंगों का नाम लेते हुए शब्दों का उच्चारण है? मैं पांच-दस केसों का मुकाबला कर रहा हूँ.एक आप भी डाल दो. मैं यह पूछना चाहता हूँ मैंने अपनी जिम्मेदारियां पूछकर क्या कोई गुनाह किया है?
एक आपको तर्क देता हूँ कि-आज मेरे केसों में किसी भी वकील को अपने केसों से संबंधित जानकारी और सबूत नहीं देता हूँ. तब क्या वो अपनी "जिम्मेदारी" सही से पूरी कर सकता है? अगर आपका जवाब "हाँ" है,तब मैं सभी वकीलों चुनौती देता हूँ कि-बिना मुझ से जानकारी लिए मेरा केस जीतकर दिखा दो. दो साल तक अपने हाथों से तुम्हारा मल-मूत्र उठाऊंगा.मेरे उपर दर्ज एक केस में जुर्म साबित होने पर तीन साल की सजा है. मेरे ऊपर साबित कर दो तो छह साल की सजा कटाने को तैयार हूँ. कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करें.एक जैन धर्म का केवल जल पीकर 30 जुलाई 2011 को एक व्रत आपके नाम.क्योंकि बीच में 27 जुलाई का व्रत किसी ओर के नाम दर्ज है.आखिर कब तक लेखकों का दबंग लोगों द्वारा शोषण होता रहेगा? हमें इसको रोकना होगा. नहीं तो कोई व्यक्ति समाज के लिए लिखने हेतु लेखक नहीं बनेगा. आज बेचारे पत्रकार मजबूरीवश अपना ईमान और जमीर मारकर लेखन कर रहे हैं. नीचे लिखी एक बात जरुर पढ़े. जिस तरह से फूलों के साथ काँटों का होना स्वाभाविक है, ठीक उसी तरह अच्छाइयों के साथ बुराइयों का होना भी स्वाभाविक है. लेकिन हर मनुष्य में योग्यता है कि वो अपनी बुराइयों को जानकर उनको अच्छाइयों में बदलने का प्रयास कर सकता है. उसके बाद उन व्यक्तियों की टिप्पणियाँ अच्छी और बुरी,सभ्य भाषा में आ रही है और उनको मैं प्रकाशित भी कर रहा हूँ. उनके द्वारा बताई गलतियों में समय-समय पर सुधार भी कर रहा हूँ, क्योंकि संत कबीर दास जी कहते हैं कि "निंदा करने वाले व्यक्ति को शत्रु न समझकर 'सच्चा मित्र' ही मानिए. उसे सदा अपनी समीप रखिए, यहाँ तक कि उसके लिए अपने आंगन में झोंपड़ी बनाकर उसके रहने की व्यवस्था कर दीजिए यानि उसके लिए सब सुविधायें जुड़ा दीजिए" इसका लाभ यह है कि-"निंदा करने वाला व्यक्ति पानी और साबुन के बिना ही आपके स्वभाव और चरित्र को धो-धोकर निर्मल बना देगा" तात्पर्य यह है कि "निंदा के भय से व्यक्ति सज़ग रहेगा, अच्छे काम करेगा और इस प्रकार उसका चरित्र अच्छा बना रहेगा" July 17, 2011 6:02 PM 
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_4919.html मेरे दोस्तों/शुभचिंतकों/आलोचकों अब किस बात का इन्तजार कर रहे हो. करों अपनी-अपनी टिप्पणियों और पोस्टों की, मुझे अपशब्दों वाली टिप्पणियों के लिंक भेजते रहना.वैसे कल मुझे कहीं जाना भी है. हो सकता कल जवाब न भी दे पाऊं. अरे! यह क्या हुआ यह आज सुबह के छह बज चुके है.यानि कल नहीं आज जवाब न दें पाऊं.चलो शुरू हो जाओ पानी और चाय पी-पीकर मुझे कोसना. जो जान से मारने की धमकी देना चाहते हो वो कृपया दो बजे के बाद दें, उससे पहले फोन बंद रहेगा या रिसीव नहीं किया जाएगा. फिर आज मेरा एक सज्जन के नाम पर भी सिर्फ जल का व्रत जो है. अपनी तपस्या से अपने दुश्मनों (पत्नी,ससुराली, दिल्ली पुलिस, जज और अन्य) के दिलों में "इंसानियत" का जज्बा भर दूँगा.ऐसी मेरी कोशिश है.
प्रधान संपादक और सहयोगियों बताओ यहाँ से कौन से कानून और धारा के तहत मेरी टिप्पणी हटा दी जायेगी? क्या वो धारा "अपराध कानून संहिता" के संस्करण-नौ में लिखी हुई है या संविधान की किताब के कौन से पृष्ठ पर लिखी हुई है या "प्रेस कानून एवं संविधान" की किताब में लिखी हुई है. अगर आपको पता हो और न बताओ तब भी मेरे साथ यह भी एक अन्याय होगा. जाओं भाई, खेल खत्म हुआ और पैसा हजम हुआ.July 17, 2011 6:03 PM
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...पाठकों और दोस्तों एक छोटी-सी गलती हुई है.जिसकी सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगता हूँ. अधिक जानकारी के लिए "भारतीय ब्लॉग समाचार" पर जाएँ और थोड़ा-सा ध्यान इसी गलती को लेकर मेरा नजरिया दो दिन तक "सिरफिरा-आजाद पंछी" को देखें.
आदरणीय शिखा कौशिक जी, मुझे जानकारी नहीं थीं कि सुश्री शालिनी कौशिक जी, अविवाहित है. यह सब जानकारी के अभाव में और भूलवश ही हुआ.क्योकि लगभग सभी ने आधी-अधूरी जानकारी अपने ब्लोगों पर डाल रखी है. फिर गलती तो गलती होती है.भूलवश "श्रीमती" के लिखने किसी प्रकार से उनके दिल को कोई ठेस लगी हो और किसी भी प्रकार से आहत हुई हो. इसके लिए मुझे खेद है.मुआवजा नहीं देने के लिए है.अगर कहो तो एक जैन धर्म का व्रत ३ अगस्त का उनके नाम से कर दूँ. इस अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ. मेरे बड़े भाई श्री हरीश सिंह जी, आप अगर चाहते थें कि-मैं प्रचारक पद के लिए उपयुक्त हूँ और मैं यह दायित्व आप ग्रहण कर लूँ तब आपको मेरी पोस्ट नहीं निकालनी चाहिए थी और उसके नीचे ही टिप्पणी के रूप में या ईमेल और फोन करके बताते.यह व्यक्तिगत रूप से का क्या चक्कर है. आपको मेरा दायित्व सार्वजनिक रूप से बताना चाहिए था.जो कहा था उस पर आज भी कायम और अटल हूँ.मैंने "थूककर चाटना नहीं सीखा है.मेरा नाम जल्दी से जल्दी "सहयोगी" की सूची में से हटा दिया जाए.जो कह दिया उसको पत्थर की लकीर बना दिया.अगर आप चाहे तो मेरी यह टिप्पणी क्या सारी हटा सकते है.ब्लॉग या अखबार के मलिक के उपर होता है.वो न्याय की बात प्रिंट करता है या अन्याय की. एक बार फिर भूलवश "श्रीमती" लिखने के लिए क्षमा चाहता हूँ.सिर्फ इसका उद्देश्य उनको सम्मान देना था.July 18, 2011 1:54 AM
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...मेरी कथनी और करनी में फर्क नहीं होता है. आप अभी मेरा यह "सिरफिरा-आजाद पंछी" आप ब्लॉग देखे. सबसे से ऊपर अपने आलोचकों का नाम उसके बाद फिर मेरी पोस्टें है.July 18, 2011 2:32 AM उसके  बाद चला विचारों के आदान-प्रदान (क्रमश:)

रविवार, 12 जून 2011

दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें.

मैंने अपनी समस्याओं से परेशान होकर पिछली पोस्ट क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं  में लिखा था और तीस हजारी की लीगल सैल में मेरे साथ बुरा बर्ताव किया था और सरकारी वकील ने जान से मारने की धमकी पूरे स्टाफ के सामने दी थीं, क्योंकि काफी दिनों बीमार चल रहा था. इसलिए उसकी उच्च स्तर पर शिकायत करने में असमर्थ था.  सरकारी वकील की शिकायत क्यों करनी पड़ी इसको देखने के लिए उसका लिंक  प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से  देखे.अब मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है.वैसे मैंने कल ही राष्ट्रपति से इच्छा मुत्यु प्रदान करने की मांग की हैं. लेकिन जब तक जिन्दा हूँ तब अपने लिखे हुए "सच आखिर सच होता है, सांच को आंच नहीं, जो लिखूंगा सच लिखूंगा, सच के सिवाय कुछ नहीं, सच के लिए मैं नहीं या झूठ नहीं, आज तक निडरता से चली मेरी कलम, न बिकी हैं, न बिकेगी, मेरी मौत पर ही रुकेगी मेरी कलम" शब्दों का मान रखते हुए भ्रष्टाचारियों की शिकायत करता रहूँगा.
मेरी परेशानियों में मेरी पत्नी और सुसराल वालों के साथ ही न्याय व्यवस्था का पहला दरवाजा यानि पुलिस का बहुत बड़ा रोल है. जिसमें क्षेत्रीय थाने से लेकर थाना कीर्ति नगर की वोमंस सेल, थाना मोतीनगर की जांच अधिकारी, ए.सी.पी, डी.सी.पी, सयुंक्त कमिश्नर और दिल्ली पुलिस कमिश्नर के कार्यालय में बैठे जिनकी इंसानियत मर चुकी हैं और आँखों के अंधे अधिकारी जिम्मेदार है. कुछ ने मजबूरीवश व कुछ ने दवाब में  और कुछ ने रिश्वत न मिलने के चलते हुए अपनी दुश्मनी निकालने के उद्देश्य से मेरी परेशानियों को बढ़ाने का काम किया. जब किसी व्यक्ति का समय फिरता है तब चारों ओर से एक के बाद एक मुसीबत का पहाड़ टूटता है. पिछले छह सालों में दो-दो बार टायफाइट, पथरी का ओपरेशन और खूनी ववासिर की बीमारी में आराम न आना. इसके साथ ही डिप्रेशन की बीमारी के कारण किसी चीज में पूरा ध्यान का नहीं लग पाना. इससे सारा बिजनेस का चौपट हो जाना और दोस्तों के साथ ही रिश्तेदारों का मुंह छिपाना. एक के बाद एक घटनाचक्रों ने आज जीवन जीने की इच्छा खत्म कर दी. ऐसी हालात में जैसा समझ में आया कह दिया और जैसा समझ में आया लिखकर भेज दिया. उसी के चलते ही दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें.  

रविवार, 8 मई 2011

नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें.

नेत्रदान  का  मेरा  आई-कार्ड
 ब्लॉगर दोस्तों/ पाठकों, मैंने आज से लगभग तीन साल पहले ही अपने नेत्र (आँखें) दान (जिसका जिक्र मैंने छह अगस्त 2010 की 
"गुड़ खाकर, गुड़ न खाने की शिक्षा नहीं देता हूँ" पोस्ट में भी किया था) कर दी थी और उसके बाद ही एक संकल्प लिया था कि-कम से कम हर साल 20 व्यक्तियों अपने नेत्रदान करने के लिए समझाकर(कन्वेस) उनके नेत्रदान करवाऊंगा. मैं आठ-दस लोगों के ही नेत्रदान करवा पाया था कि-मेरे ससुराल वालों की हद से ज्यादा मेरे वैवाहिक जीवन में दखलांदाजी और पत्नी की दूषित मानसिकता ने मेरे सभी देशहित और सामाजिक कार्यों रोक दिया. अपने समाचार पत्रों के माध्यम से समाज व देशहित के बहुत से कार्य करता था. मगर आज यह स्थिति है कि-अब घर से बाहर भी बहुत कम निकलना होता हैं, क्योंकि अब स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है और कठिन परिक्षम भी नहीं होता हैं. दो साल से चली आ रही डिप्रेशन की बीमारी ने और हर रोज एक नई समस्याओं ने अब याद रखने की क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया हैं. अब भी कई व्यक्ति मिलते हैं नेत्रदान करने के इच्छुक मगर आर्थिक कारणों से उनके (दूर रहने वाले  व्यक्तियों के ) पास जाना संभव नहीं हो पाता है.
           गर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे?
मैंने आपके लिए यहाँ पर एक खाली और एक भरा हुआ फॉर्म के साथ पढने योग्य सामग्री भी दी है. अगर आपके राज्य में क्षेत्रीय नेत्रदान शाखा हो तो वहां पर अपना फॉर्म जमा करवाए. किसी प्रकार की परेशानी (समय या कहीं आने-जाने की) हो तब फॉर्म भरकर मुझे डाक या कोरियर से भेज दें. मेरा प्रकाशन परिवार आपके फॉर्म को पहुँचाने की स्वंय व्यवस्था करेंगा.  आपसे विनम्र अनुरोध है कि-नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें.धर्म और जाति से ऊपर उठकर नेत्रहीनों व देशहित में अपना योगदान जरुर करेंगे. ऐसा मुझे पूरा विश्वास है. अगर आप चाहे तो आपका आई-कार्ड आने पर मुझे ईमेल से सूचना भिजवा दें. तब आप लोगों का नाम अपने समाचार पत्र या ब्लॉग पर प्रकाशित कर दूंगा. जिससे कुछ अन्य व्यक्ति भी प्रेरणा लेकर नेत्रदान कर सकें. आपके मन में कोई दुविधा है. तब फ़ोन करें.
हमारा पता :- शकुन्तला  प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन 
A-34-A,शीश राम पार्क,सामने-शिव मंदिर,उत्तम नगर,नई दिल्ली-110059 फ़ोन : 09910350461,09868262751, 011-28563826   

















     

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

श्री रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं

आप  भी  श्री  राम  परिवार  के  दर्शन  करें
श्री रामनवमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
दोस्तों/पाठकों, नौ दिन की अटूट तपस्या,अराधना,त्याग और व्रत उपवास के बाद जब आप सभी का मन निर्मल, पाप मुक्त और विकार मुक्त हो गया होगा. तब मर्यादा पुरुषोत्तम राम जी का संदेश "जियो और जीने दो" के सिद्धांतवादी,भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने वाले मर्यादित पुरुषोत्तम राम के जन्मदिन उत्सव के इस त्यौहार रामनवमी पर आप सभी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.जरा हम आज सोचे! जरा हम समझें और जरा हम आत्मचिंतन करें. अपने पिता के एक वचन के लिए जिसने सौतेली माँ का सम्मान करते हुए अपनी जिंदगी गुज़री हो. जिसके पास असीम शक्ति हो और उसने समुंदर को अपने तीर से सुखाने के स्थान पर उस जगह पुल बनाया हो. जिसने पाप मुक्त समाज दिया हो. बुराई पर विजय प्राप्त की हो. क्या हम ऐसे मर्यादित पुरुषोत्तम राम को पूजनीय और वन्दनीय मानते हैं? हम दिल पर हाथ रखकर देखे उनकी कौन-सी ऐसी शिक्षा है, जिसका हम पालन कर रहे हैं? क्या हम मर्यादित हैं? क्या हमें इन हालातों में जब मुंह में राम बगल में छुरी है, तब हमें खुद को राम का भक्त कहा जाना चाहिए? आखिर हमारे कर्म रावण की तरह और पूजा राम की.क्या इन हालातों में हमे सच्चा रामभक्त बनने के लिए भूख,गरीबी,बुराई,भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग नहीं लड़नी  चाहिए? बुराई को नहीं बल्कि अच्छाई को उजागर नहीं करना चाहिए.अगर हाँ,तब उठो दोस्तों भगवान राम के दिखावटी भक्त बनकर मन में जो रावण बैठा है. उसका वध कर दो और देश को  भ्रष्टाचार मुक्त रामराज्य स्थापित करने का संकल्प लेकर तैयार हो जाओ. जिससे मेरा भारत देश मर्यादा पुरुषोत्तम राम का यह देश गर्व से कह सके कि- मेरा भारत महान है और मेरा भारत महान रहेगा.एक बार फिर से रामनवमी की सभी भक्तजनों को हार्दिक शुभकामनाएं.अख्तर खान 'अकेला' कोटा(राजस्थान)
साँई  बाबा  के  दर्शन  करें
रमेश कुमार जैन ने लिखा था कि-चोरी हो गई चोरी. आपके शब्दों की चोरी कर ली मैंने भाई साहब जी, चोरी करके ही अपने ब्लॉग पर सार्वजनिक भी कर रहा हूँ. चोरी का केस आप कोटा में डालेंगे या दिल्ली में. इसकी सूचना ईमेल पर भेज देना. चोरी का मुख्य कारण आपकी उपरोक्त पोस्ट में जनहित को संदेश और आज तक आपका "शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार के इन्टरनेट संस्करण का निवेदन स्वीकार न करना और एक भी देशहित व जनहित हेतु उपरोक्त ब्लॉग हेतु पोस्ट प्रकाशित के लिए नहीं भेजना. यह था आपका जुर्म. आपके लेख की हमने चोरी कर ली है. यह है हमारा जुर्म. सजा जो आप देना चाहे.
      रमेश भाई नये अंदाज़ की नई टिप्पणी के लिए शुक्रिया. लेकिन भाई चोरी तो उस चीज़ की होती हैं.जो अपनी नहीं होती.इसलिए भाई हम और हमारा जो कुछ भी हैं सब आपका अपना है. इसलिए चोरी का सवाल ही नहीं उठता. हाँ, जहां तक सवाल हमारे जुर्म का हैं. उसके लिये हम माफ़ी चाहते हैं. शिकायत जल्द दूर होगी.-अख्तर खान 'अकेला',कोटा(राजस्थान)         
रमेश कुमार जैन ने लिखा था कि-अख्तर खान 'अकेला' जी, आपकी टिप्पणी का अनुवाद और संपादन भी कर दिया है, क्योंकि आपका छोटा भाई हिन्दीप्रेमी जो है. इस सन्दर्भ में मेरे विचार निम्नलिखित है. अगर आप सच में भारत देश के प्रति ईमानदार है और देश से भ्रष्टाचार मिटाना चाहते हैं. भ्रष्टाचार से मुक्त भारत देश को बनाने के लिए हम क्यों भाषा भी विदेशी का प्रयोग करना पड़ रहा है. राष्ट्र के प्रति हर व्यक्ति का पहला धर्म है अपने राष्ट्र की राष्ट्रभाषा का सम्मान करना. अंजाने में हुई किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ.


गुरुवार, 24 मार्च 2011

शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड-4

 पाठकों/दोस्तों हेतु महत्वपूर्ण सूचना: माँ का बुलावा आया है. माँ(वैष्णों देवी) के दर्शनों को जा रहा हूँ, इसलिए 25 मार्च से 31मार्च तक मेरे दोनों फ़ोन बंद रहेंगे और ईमेल का जवाब देने में असमर्थ रहूँगा.
              एक बार आप भी बोलो जय माता दी.आप दोस्तों की दुआएं और माँ शेरा वाली का आर्शीवाद रहा तो बहुत जल्द ही फिर से समाचार पत्र प्रकाशित होने लग जायेगा. इतने आप सभी पहले मेरे ऑफिस में लगी और अब ऑफिस के बार लगा एक ओर फ्लेक्स बोर्ड का अवलोकन करें. 
 पिछले 3-4 दिनों में तीन-चार ब्लोगों पर कुछ पोस्ट पढ़ी. टिप्पणियाँ पोस्ट की. टिप्पणियों में कहीं गिले-शिकवे किये, कही सुझाव दिए. कहीं अनुभव बांटा और कही मदद की इच्छा व्यक्त की. इसलिए आज फिर कुछ ब्लोगों पर की कुछ मुख्य टिप्पणियाँ यहाँ पर प्रकाशित है.
मुख्य टिप्पणियाँ
चोरी हो रहे हैं लेख / रचनाएं के सन्दर्भ में श्री कुमार राधारमण,एस.एम.मासूम, Rajey Sha राजे_शा, महेन्द्र मिश्र, ललित शर्मा, नीरज जाट जी,दिनेशराय द्विवेदी, सुशील बाकलीवाल, ज़ाकिर अली ‘रजनीश’, राज भाटिय़ा, निशांत मिश्र, राजीव तनेजा, और निर्मला कपिला आदि द्वारा व्यक्त विचारों से सहमत हूँ. प्रिंट मीडिया में भी आजकल यह युग चल पड़ा है. मगर आज भी कुछ प्रकाशन है. जो साभार देना नहीं भूलते है या संकलन लिखना नहीं भूलते हैं. मैं राज भाटिया जी की बात को समर्थन करने के साथ ही आप सभी पाठकों/ ब्लागरों से आग्रह करता हूँ कि-मेरी इन दिनों मानसिक स्थिति को देखते हुए अगर कभी मुझसे किसी प्रकार कोई गलती हो जाती है. तब एक बार मुझे मेरी गलती का अहसास करवाने की कृपया जरुर करें. वैसे मेरा यह विचार है कि-अगर कोई ऐसी जानकारी(देश और समाजहित हेतु) भरा लेख लेखक का नाम या सन्दर्भ याद न रहने पर दूसरों के हितों हेतु प्रकाशित कर दिया गया है. तब कुछ लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रकाशित करना बुरा नहीं है. आप इस सन्दर्भ में अपने विचारों से मेरी ईमेल पर ईमेल भेजकर अवगत करवाएं. आपका यह नाचीज़ दोस्त इन्टरनेट की दुनिया का अनपढ़, ग्वार इंसान है.

श्रीमती विनीता शुक्ला जी, आपकी सुनीता जी और डॉ. जमाल जी को सम्बोधित टिप्पणी में व्यक्त आपके विचारों से सहमत भी हूँ. स्त्री का शिक्षित होना बहुत जरूरी है. मगर किसी भी कारणवश अगर आप अपने पति से ज्यादा शिक्षित है तो क्या किसी भी नारी को अपने पति की जरूरतों का ध्यान नहीं रखना चाहिए और क्या हमें उच्च शिक्षा मान-सम्मान का ज्ञान नहीं कराती हैं? अगर हाँ, तब भी क्यों अपने शिक्षा पर कुछ महिलाएं घमंड करती हैं.

श्रीमती रेखा श्रीवास्तव जी का साक्षात्कार लेखक सलीम ख़ान द्वारा लिया गया. बहुत अच्छा बन पड़ा है. मगर उनके hindigen, कथा-सागर, यथार्थ, मेरा सरोकार, और मेरी सोच ब्लोगों का लिंक देकर सुन्दरता में चार चाँद लगाये जा सकते थें.

         अब इस वायरस को ढूंढ़ कर हमे सबको मरना होगा और भाईचारे सद्भावना के वायरस से इस ब्लोगिंग की दुनिया को महकाना होगा. चमकाना होगा और रंगों की इस होली के त्यौहार को खुबसुरत रंगीन बनाने के लिए खतरनाक वायरसों से खुद को बचाने के लिए अब खुद के दिमाग में एंटी वायरस डलवाना होगा. क्या हम ऐसा कर सकेंगे? श्रीमान जी, आपने सही कहा है जैसे-हमें रोटी स्वंय खानी होती हैं, ठीक उसी प्रकार से वायरस को मारने के लिए हमें ही आगे आना होगा.

                                               जसप्रीत कौर(बदला हुआ नाम) जी, मैं आपके सुनहरेपल ब्लॉग का अनुसरण करना चाहता हूँ.मगर आपने उसमें Followers का कालम ही बनाया है. कृपया करके आप शुरुयात की रचनाओं "तारों की चमक मैं, तेरे बाहों की तपिश, मेरा महबूब, सपना" को हिंदी में अनुवाद करके पोस्ट करों,बाद की रचनाएँ "ज़िक्र तुम्हारा-सिर्फ तुम्हारा सनम, शरारत- :D, संगदिल सनम ने मुझे तड़पाया, प्यार के नाम" बहुत अच्छी है. मगर कहीं -कहीं हिंदी के उच्चारण की गलती होने के कारण चाँद पर दाग लग रहा है. अगर किसी कारणवश आप हिंदी में शुध्द उच्चारण लिखने में असमर्थ हो तो आप रचना पोस्ट करने से पहले मुझे ईमेल कर दिया करें . उसके बाद मैं उसका शुध्दिकरण करके ईमेल कर दिया करूँगा . इसमें आपकी पोस्ट एक -दो दिन देर से प्रकाशित होगी . मगर आपकी हर रचना चाँद की तरह चमकेंगी . आपके जवाब का मन से इन्तजार रहेगा ..........

                    बड़े भाई अख्तर साहब जी, मैंने निम्नलिखित टिप्पणी "होली" के लेख पर पोस्ट की थीं. शायद आप इसको "होली" का मजाक समझ बैठे. मगर बड़े भाई अख्तर साहब जी मेरी एक ही खूबी(अपने मुंह मिठ्ठू बन रहा हूँ) है कि-कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं होता है. "शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार के इन्टरनेट संस्करण के लिए "अवैतनिक" मुख्य संवाददाता पद हो सकता हैं. आप जैसी हैसियत वाले व्यक्तित्व के लिए बहुत छोटा-सा पद हो सकता है, मगर मेरी भावनाएं बहुत ऊंची है. इस सन्दर्भ में अपने विचारों से अवगत कराएँ. आज आर्थिक हालत बहुत ख़राब होने पर भी अपने सिध्दांतों से समझोता नहीं किया है और न भविष्य में करने का इरादा है. किसी प्रकार की अनजाने में गुस्ताखी हो गई हो तो क्षमा कर देना.
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