शिखा कौशिक जी -- प्रधान संपादक .. आपके पास इस मंच का पूर्ण अधिकार होगा. आप किसी भी लेखक को जोड़ या हटा सकती है. किसी भी खबर को सम्पादित कर सकती है या नियम के विपरीत होने पर हटा सकती है, मंच को बेहतर बनाने के लिए आप हमें सुझाव दे सकती है.
सह-संपादक -- कुणाल वर्मा व सौरभ दूबे ---- आपकी जिम्मेदारी यह है की आप दोनों लोग शिखा जी का सहयोग करेंगे. किसी भी लेख के आपत्तिजनक होने पर आप संशोधन या हटाने के सम्बन्ध में प्रधान संपादक से विचार-विमेश करेंगे.
सलाहकार संपादक --- आशुतोष नाथ तिवारी , एस एम मासूम , इंजी. सत्यम शिवम्, सलीम खान --- आप सभी लोग वरिष्ठ व अनुभवी ब्लोगर है. आपके सुझाव के अभिलाषी हम भी सदैव रहते हैं. आप लोगो से अनुरोध है की समय समय पर अपने अनुभवों से संपादको को सुझाव देते रहे.
प्रसार व्यवस्थापक -- रमेश कुमार जैन उर्फ़ सिरफिरा -- रमेश जी, मैं देखता हूँ आप कई ब्लोगों पर आवागमन करते रहते हैं. मंच के प्रसार-प्रचार में आप बेहत योगदान देंगे यह मेरा विश्वाश है.आप सभी को शुभकामना.
रमेश कुमार जैन ने ‘सिरफिरा‘ दिया
नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं
मुझे आपसे एक शिकायत है कि आपने एक बार मुझे फोन करके या ईमेल भेजकर नहीं पूछा. मेरा विचार आपको "प्रसार व्यवस्थापक" बनाने का है. आप क्यों एक तरफा फैसले लेते हैं? मुझे ऐसी कुर्सी नहीं चाहिए. जिसके लिए मैं मानसिक रूप से तैयार न होऊं.मुझे "नाम" नहीं "काम" चाहिए. जब मैं काम करने में असमर्थ हूँ. तब नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं है. हमारे देश में कुर्सी के लिए स्वार्थी लोगों/नेताओं क्या कोई कमी है? आप मेरे संदर्भ में कोई भी फैसला लेने से पहले मुझसे बातचीत जरुर करें. उपरोक्त "प्रसार व्यवस्थापक" पद के नियमों-शर्तों और जिम्मेदारियों से अवगत करवाए बिना मुझे पद नहीं देना चाहिए था. अगर आप चाहते हैं कि-पद पर बना रहूँ तब आप मुझे नियमों-शर्तों और जिम्मेदारियों से अवगत करवाए. अगर ऐसा करने में असमर्थ हैं.तब आप मेरा इस्तीफा स्वीकार करें. मुझे उपरोक्त पद के बारें में जानकारी प्रदान करें कैसे "प्रचार" की व्यवस्था बनाकर रखनी होगी? कितने व्यक्ति है जो मेरे अंतर्गत कार्य करेंगे और कितने लोग ने इस पद के लिए मेरे नाम का समर्थन किया था? क्या यहाँ(ब्लॉग जगत) में कोई भी कुर्सी कोई भी ले सकता है. मैं पद की "गरिमा" का सम्मान करते हुए कह रहा हूँ. कल को मेरे कार्य के संतोषजनक न होने पर आप हटा दें, उससे पहले मैं स्वयं एक तरफा लिए फैसले के कारण पद से त्याग पत्र देता हूँ. मेरे पास एक प्रकाशन परिवार के साथ पहले ही अनेक जिम्मेदारियां है. इसलिए बिना नियमों-शर्तों और जिम्मेदारियों से अवगत हुए पद ग्रहण नहीं कर सकता हूँ और अवगत कराने पर पद स्वीकार करने को तैयार भी हूँ. लेकिन मेरी निजी समस्याओं को देखते हुए मेरे कार्य की समीक्षा करने को पूरा ब्लॉग जगत और प्रबंध मंडल निर्णय लेने में काबिल हो तो और मेरे निजी कारणों में कुछ सहायता करने की हामी भरें. वैसे ब्लॉग जगत में एक "दिखावा" की दुनियां कायम हो रही हैं. जिसको मैं पसंद नहीं करता हूँ.
4 टिप्पणियाँ: DR. ANWER JAMAL ने कहा…1- प्रिय भाई हरीश जी ने आपके बारे में भी वही ग़लती दोहरा दी है जिस पर आदरणीय महेन्द्र जी ने उन्हें टोका था। ऐसा लगता है कि उन्होंने किसी से भी नहीं पूछा और सबको पद दे दिए। अब हो यह रहा है कि हरेक आदमी पद पर ठोकर मार रहा है। इससे इस सम्मानित समाचार पत्र की गरिमा पर आंच आ रही है। हरीश जी से ऐसी ग़ैर ज़िम्मेदारी की उम्मीद नहीं थी कि वह आपको आपकी ज़िम्मेदारियों तक से अवगत नहीं कराएंगे। इस बात को लेकर तो उन्होंने बहुत सी जगह अपने से प्यार करने वाले एक सीनियर ब्लॉगर की आलोचना में पोस्ट भी बनाई थी कि ‘अमुक भाई एक ग़ैरज़िम्मेदार आदमी हैं।‘ क्या इसे पर उपदेश कुशल बहुतेरे कहा जाएगा ? 2- मंच अपने कंधों पर चलाए जाते हैं। अगर ख़ुद न संभाला जा सके तो अपने जी के लिए जंजाल खड़े करना ठीक नहीं है। जो भी काम किया जाए उसे पूरी ज़िम्मेदारी से ही करना चाहिए। 3- आपकी समस्या से हम भी चिंतित हैं। मालिक से आपके लिए मुक्ति की प्रार्थना करते हैं कि आपकी समस्या दूर हो और आपके घर में ख़ुशियां लौटें।१५ जुलाई २०११ ११:०७ पूर्वाह्न
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" ने कहा…डॉ अनवर जमाल साहब जी, चरण बिंदु एक के आपके पहले पैराग्राफ से पूरी तरह से सहमत हूँ. दूसरे पैराग्राफ में लिखी यह ‘अमुक भाई एक ग़ैरज़िम्मेदार आदमी हैं।‘ बात मैंने कही पढ़ी नहीं है. इसलिए इसका लिंक मुझे उपलब्ध करवाए. अपनी पोस्ट में लिखी एक एक बात पर अटल हूँ.बेशक आज गरीब हूँ. मगर पैसों के लिए कभी अपना ईमान व जमीर नहीं बेचा है. चरण बिंदु दो का भी पूरा समर्थन करता हूँ.एक नया ब्लॉग बनाने ज्यादा से ज्यादा तीन-चार घंटे लगते हैं या होंगे.लेकिन उस पर शोध और उसकी रणनीति पर बहुत समय देने की जरूरत होती है.आप किसी से पूछे बिना ही किसी कुर्सी की जिम्मेदारी नहीं दे सकते हैं. मैं अब भी कह रहा मुझे जिम्मेदारियों से अवगत करा दो. पद से त्याग पत्र नहीं दूँगा.मैं किसी ब्लॉग को सिर्फ इसलिए नहीं पढता कि उसको लिखने वाला मुसलमान है या हिंदू है.बल्कि यह देखता हूँ वो अपने लेखन को किसके लिए कर रहा है.अपने लेखन पर उसने कितना शोध किया है.कितना सच लिख रहा है.जैसे-कोई यह लिखें फलां मंत्री बहुत ईमानदार है और दुनियां जानती है.वो दुनियां का सबसे बड़ा बईमान है. चरण बिंदु तीन के लिए आपका धन्यवाद. आपकी दुआओं की हम पर ऐसे ही खुदा करें इनायत बरसे. पोस्ट प्रकाशित होने के बाद ऑनलाइन वार्तालाप का एक नमूना :- ७:२१ अपराह्न editor.bhadohinews: kyo naraz hai bhai, namaskar ७:२३ अपराह्न मुझे: नाराज होने का हक छोटे भाई के पास ही होता है. ७:२४ अपराह्न आपको इतना बड़ा फैसला नहीं लेना चाहिए था. ७:२५ अपराह्न जबकि शायद आप मेरी परशानियों से भली-भांति अवगत थें. ७:२६ अपराह्न क्या आप हमारी परेशानियों को मजाक समझते हैं एक बार मेरे ब्लोगों का एक एक शब्द पढकर देख तो लो. ७:२७ अपराह्न मैं काल्पनिक कथा वाचक नहीं हूँ.
10 comments:
रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" said...उसके बाद एक ऑनलाइन मुझे लिंक दिया गया और नए प्रबंध मंडल का स्वागत करे उपरोक्त पोस्ट देखने को कहा गया. तब मैंने विरोध स्वरूप एक टिप्पणी(कुछ बाते लिखना भूल गया था, क्योंकि मैं दो साल तक डिप्रेशन की बीमारी ग्रस्त रहा हूँ.) की थी और फिर एक पोस्ट http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html "नाम के लिए कुर्सी का कोई फायदा नहीं" नामक से लिखी थी. जो यहाँ से हटा दी गई है. जिसको फ़िलहाल एक नए शीर्षक रमेश कुमार जैन ने ‘सिर-फिरा‘ दिया"" से "ब्लॉग की खबरें" पर देखा जा सकता है. उसके बाद एक पोस्ट मानवीय भूल होने http://blogkeshari.blogspot.com/2011/07/blog-post_16.html, पोस्ट प्रकाशित हुई. जो अब हटा दी गई है. मैंने फिर दो टिप्पणी की,वो भी हटा दी गई. जो नीचे लिखी हुई है.
श्रीमान जी, आपने मुझे एक तरफा दी जिम्मेदारी से मुक्त करके अहसान किया है. उसका धन्यवाद स्वीकार कीजिये. वैसे मैंने कभी "प्रचारक" का कार्य नहीं किया. इसलिए उसकी समझ नहीं है. क्या अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करने के लिए उसकी "भूमिका" की जानकारी प्राप्त करना गुनाह है. अगर आपकी विचारधारा मुझे "गुनाहगार" मानती है.तब मुझे इसका कोई अफ़सोस नहीं है. क्या हर व्यक्ति को हर कार्य की "समझ" होती है? होती होगी मुझे तो नहीं है. आपको दुःख नहीं होना चाहिए बल्कि दुःख हमें मनाना चाहिए आप जैसे बड़े भाइयों का हमें साथ छोड़ना पड़ रहा, बिना जानकारी दिए "पद" दिए जाने के कारण. मुझे खुशी है कि आपने हमारा इस्तीफ़ा स्वीकार कर लिया हैं. अगर अनजाने में कोई गलती हो गई हो क्षमा प्रार्थी हूँ. मुआवजा के तौर पर कागज के टुकड़े नहीं है, मगर फिर भी 23 जुलाई को जैन धर्म का "अमल*" का एक व्रत आपके नाम. *जिसमें एक समय एक स्थान पर बैठकर एक तरह का अन्न(आनाज)को बिना किसी स्वाद** के खाना होता है.**जैसे-उसमें नमक या मीठा,इसमें भुने हुए चने, सादा चावल, सादी रोटी आदि आती है.July 17, 2011 6:00 PM