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गुरुवार, 24 मार्च 2011

शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड-4

 पाठकों/दोस्तों हेतु महत्वपूर्ण सूचना: माँ का बुलावा आया है. माँ(वैष्णों देवी) के दर्शनों को जा रहा हूँ, इसलिए 25 मार्च से 31मार्च तक मेरे दोनों फ़ोन बंद रहेंगे और ईमेल का जवाब देने में असमर्थ रहूँगा.
              एक बार आप भी बोलो जय माता दी.आप दोस्तों की दुआएं और माँ शेरा वाली का आर्शीवाद रहा तो बहुत जल्द ही फिर से समाचार पत्र प्रकाशित होने लग जायेगा. इतने आप सभी पहले मेरे ऑफिस में लगी और अब ऑफिस के बार लगा एक ओर फ्लेक्स बोर्ड का अवलोकन करें. 
 पिछले 3-4 दिनों में तीन-चार ब्लोगों पर कुछ पोस्ट पढ़ी. टिप्पणियाँ पोस्ट की. टिप्पणियों में कहीं गिले-शिकवे किये, कही सुझाव दिए. कहीं अनुभव बांटा और कही मदद की इच्छा व्यक्त की. इसलिए आज फिर कुछ ब्लोगों पर की कुछ मुख्य टिप्पणियाँ यहाँ पर प्रकाशित है.
मुख्य टिप्पणियाँ
चोरी हो रहे हैं लेख / रचनाएं के सन्दर्भ में श्री कुमार राधारमण,एस.एम.मासूम, Rajey Sha राजे_शा, महेन्द्र मिश्र, ललित शर्मा, नीरज जाट जी,दिनेशराय द्विवेदी, सुशील बाकलीवाल, ज़ाकिर अली ‘रजनीश’, राज भाटिय़ा, निशांत मिश्र, राजीव तनेजा, और निर्मला कपिला आदि द्वारा व्यक्त विचारों से सहमत हूँ. प्रिंट मीडिया में भी आजकल यह युग चल पड़ा है. मगर आज भी कुछ प्रकाशन है. जो साभार देना नहीं भूलते है या संकलन लिखना नहीं भूलते हैं. मैं राज भाटिया जी की बात को समर्थन करने के साथ ही आप सभी पाठकों/ ब्लागरों से आग्रह करता हूँ कि-मेरी इन दिनों मानसिक स्थिति को देखते हुए अगर कभी मुझसे किसी प्रकार कोई गलती हो जाती है. तब एक बार मुझे मेरी गलती का अहसास करवाने की कृपया जरुर करें. वैसे मेरा यह विचार है कि-अगर कोई ऐसी जानकारी(देश और समाजहित हेतु) भरा लेख लेखक का नाम या सन्दर्भ याद न रहने पर दूसरों के हितों हेतु प्रकाशित कर दिया गया है. तब कुछ लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रकाशित करना बुरा नहीं है. आप इस सन्दर्भ में अपने विचारों से मेरी ईमेल पर ईमेल भेजकर अवगत करवाएं. आपका यह नाचीज़ दोस्त इन्टरनेट की दुनिया का अनपढ़, ग्वार इंसान है.

श्रीमती विनीता शुक्ला जी, आपकी सुनीता जी और डॉ. जमाल जी को सम्बोधित टिप्पणी में व्यक्त आपके विचारों से सहमत भी हूँ. स्त्री का शिक्षित होना बहुत जरूरी है. मगर किसी भी कारणवश अगर आप अपने पति से ज्यादा शिक्षित है तो क्या किसी भी नारी को अपने पति की जरूरतों का ध्यान नहीं रखना चाहिए और क्या हमें उच्च शिक्षा मान-सम्मान का ज्ञान नहीं कराती हैं? अगर हाँ, तब भी क्यों अपने शिक्षा पर कुछ महिलाएं घमंड करती हैं.

श्रीमती रेखा श्रीवास्तव जी का साक्षात्कार लेखक सलीम ख़ान द्वारा लिया गया. बहुत अच्छा बन पड़ा है. मगर उनके hindigen, कथा-सागर, यथार्थ, मेरा सरोकार, और मेरी सोच ब्लोगों का लिंक देकर सुन्दरता में चार चाँद लगाये जा सकते थें.

         अब इस वायरस को ढूंढ़ कर हमे सबको मरना होगा और भाईचारे सद्भावना के वायरस से इस ब्लोगिंग की दुनिया को महकाना होगा. चमकाना होगा और रंगों की इस होली के त्यौहार को खुबसुरत रंगीन बनाने के लिए खतरनाक वायरसों से खुद को बचाने के लिए अब खुद के दिमाग में एंटी वायरस डलवाना होगा. क्या हम ऐसा कर सकेंगे? श्रीमान जी, आपने सही कहा है जैसे-हमें रोटी स्वंय खानी होती हैं, ठीक उसी प्रकार से वायरस को मारने के लिए हमें ही आगे आना होगा.

                                               जसप्रीत कौर(बदला हुआ नाम) जी, मैं आपके सुनहरेपल ब्लॉग का अनुसरण करना चाहता हूँ.मगर आपने उसमें Followers का कालम ही बनाया है. कृपया करके आप शुरुयात की रचनाओं "तारों की चमक मैं, तेरे बाहों की तपिश, मेरा महबूब, सपना" को हिंदी में अनुवाद करके पोस्ट करों,बाद की रचनाएँ "ज़िक्र तुम्हारा-सिर्फ तुम्हारा सनम, शरारत- :D, संगदिल सनम ने मुझे तड़पाया, प्यार के नाम" बहुत अच्छी है. मगर कहीं -कहीं हिंदी के उच्चारण की गलती होने के कारण चाँद पर दाग लग रहा है. अगर किसी कारणवश आप हिंदी में शुध्द उच्चारण लिखने में असमर्थ हो तो आप रचना पोस्ट करने से पहले मुझे ईमेल कर दिया करें . उसके बाद मैं उसका शुध्दिकरण करके ईमेल कर दिया करूँगा . इसमें आपकी पोस्ट एक -दो दिन देर से प्रकाशित होगी . मगर आपकी हर रचना चाँद की तरह चमकेंगी . आपके जवाब का मन से इन्तजार रहेगा ..........

                    बड़े भाई अख्तर साहब जी, मैंने निम्नलिखित टिप्पणी "होली" के लेख पर पोस्ट की थीं. शायद आप इसको "होली" का मजाक समझ बैठे. मगर बड़े भाई अख्तर साहब जी मेरी एक ही खूबी(अपने मुंह मिठ्ठू बन रहा हूँ) है कि-कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं होता है. "शकुन्तला प्रेस ऑफ़ इंडिया प्रकाशन" परिवार के इन्टरनेट संस्करण के लिए "अवैतनिक" मुख्य संवाददाता पद हो सकता हैं. आप जैसी हैसियत वाले व्यक्तित्व के लिए बहुत छोटा-सा पद हो सकता है, मगर मेरी भावनाएं बहुत ऊंची है. इस सन्दर्भ में अपने विचारों से अवगत कराएँ. आज आर्थिक हालत बहुत ख़राब होने पर भी अपने सिध्दांतों से समझोता नहीं किया है और न भविष्य में करने का इरादा है. किसी प्रकार की अनजाने में गुस्ताखी हो गई हो तो क्षमा कर देना.

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